श्रीमद्भागवत कथा हमें सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा प्रदान करती है।इस पावन कथा को श्रवण कर जीव मोक्ष को प्राप्त करता है।

मस्तूरी से प्रमोद अवस्थी :-

मस्तुरी।श्रीमद्भागवत कथा हमें सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा प्रदान करती है।इस पावन कथा को श्रवण कर जीव मोक्ष को प्राप्त करता है। ब्राह्मणों का परम कर्तव्य है कि सनातन धर्म की रक्षा करे और लोककल्याणार्थ धर्म का उपदेश देकर समस्त प्राणियों को “धर्मो रक्षति रक्षितः”भावना से ओतप्रोत कर जगत का कल्याण करे।धर्म ग्रन्थ वेद पुराण हमारे आदर्श और पूजनीय हैं जिनका अभिनन्दन कर सम्पूर्ण भारतवर्ष का प्रत्येक मानव शिक्षा ग्रहण करता है और सदाचरण,सत्संगति,परोपकार व समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम-सम्मान की भावना को अपनाकर सभी धर्मों के प्रति आदर का भाव रखता है।श्रीमद्भागवत हमें जीवन जीने की कला सिखाती है।सद्गुरु के सान्निध्य को प्राप्तकर मानव अनेक कलाओं से युक्त होकर समाज में गौरव को प्राप्त करता है।इस संसार में सत्संग की बड़ी महिमा है गुरुकृपा व सत्संग के बिना ज्ञान सहजता से प्राप्त नहीं होता।उक्त व्याख्यान व्यासपीठ से ग्राम खैरा में चल रही भागवत कथा में कथा वाचिका पूजा शुक्ला ने कही।
कथावा चिका पूजा शुक्ला ने पंचम दिवस की कथा में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला,गिरिराज पर्वत धारण व महारास की सुंदर लीलाओं का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जगत के कल्याण के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने असुरों का संहार कर अपने भक्तों की रक्षा की है।एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने जब ग्वाल बालों के साथ गाय चराते हुये गोवर्धन पर्वत के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा की गोपियाँ छप्पन प्रकार का भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं।श्रीकृष्ण के द्वारा पूँछे जाने पर ब्रजवासी गोपियों ने बतलाया कि ऐसा करने से इन्द्र देवता प्रसन्न होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिसमें अन्न की पैदावार होगी।भगवान ने कहा कि इन्द्र देवता के स्थान पर इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।ब्रजवासी भगवान के बताए अनुसार गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।इस अनुष्ठान पूजन को देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा तथा क्रोधित होकर अहंकार में मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज में मूसलाधार वर्षा कर सब कुछ तहस नहस कर दें।अत्यंत वर्षा होते देख ग्वालबाल सभी घबरा गए तब भगवान ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की शरण में जाने के लिए कहा और अपनी कनिष्ठ उंगली में गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी की रक्षा किये और इन्द्र के अहंकार को उन्होंने दूर किया।कथा के दौरान व्यासजी ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बाँसुरी की ऐसी मधुर तान छेड़ी कि समस्त गोपियाँ मंत्रमुग्ध हो गईं।भगवान ने बाँसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा और परमात्मा का मिलन हुआ।जीव और ब्रह्म के मिलने को हो महारास कहा गया है।
कथा वाचिका की मधुर वाणी से ग्राम खैरा में श्रोताओं की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही है

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