
भक्त कर्मा माता की प्रचलित कहानी के कुछ उद्घृत अंशों में से माता का जन्म, विवाह, नरवर के कछूवाहा राजा द्वारा तैलिक वंश पर अत्याचार, माता कर्मा द्वारा प्रतिकार एवं भक्ति की शक्ति से तेल कुंड को भरा जाना, राजा का शरणागत होना किंतु माता कर्मा का कुटुंब सहित नरवर का त्याग इत्यादि पर चर्चा हो चुकी है । माता कर्मा नरवर से पलायन कर कुटुंब सहित राजपूताना पहुंचती हैं लेकिन स्थान का नाम उल्लेखित नहीं है । उसी स्थान में तीन वर्ष बाद उनके पति चतुर्भुज साह की मृत्यु हो जाती है और माता कर्मा सती होने की निश्चय करती है । तभी भगवान जगन्नाथ का आकाशवाणी होता है कि तुम्हारे गर्भ में बच्चा पल रहा है उसको जन्म देकर लालन पालन करो तत्पश्चात मेरा दर्शन होगा । माता कर्मा भगवान के आदेश को शिरोधार्य कर दूसरे पुत्र को जन्म देती है और 15 वर्षों तक लालन पालन करती है । तत्पश्चात माता प्रभु दर्शन के सन 1059 में गृह त्याग करती हैं । प्रचलित पुरानी कहानी में वह सीधे पुरी पहुंचती हैं । यहां उल्लेखनीय यह है कि राजिम के सारथी समाज का दावा है कि उनके तीन पीढ़ी के पूर्वजों से माता कर्मा के महोत्सव का आयोजन होते रहा है और माता कर्मा का स्थाई मंदिर बना हुआ है । सारथी समाज में प्रचलित कहानी के अनुसार माता कर्मा नदी मार्ग से सिहावा की ओर से राजिम पहुंची थी और उनके बीच विश्राम कर पुरी धाम के लिए प्रस्थान की थी तथा माता कर्मा के सानिध्य से उनके कुटुंब को प्रतिष्ठा लाभ मिला था ।
हमने माता कर्मा के प्रचलित पुरानी कहानी में राजिम की कहानी जोड़कर नया प्रारूप प्रस्तुत किया है जो अभी विकासशील है।