उच्च न्यायालय जबलपुर मध्य प्रदेश से 2018 से पारित आदेश की आर्थिक लाभ से छत्तीसगढ़ के पात्र हैं क्षेत्रपाल अभी तक वंचित है

! बिलासपुर :”उच्च न्यायालय जबलपुर मध्य प्रदेश में दायर याचिका क्रमांक 4717 /2001 शासन विरुद्ध गणेश प्रसाद दुबे एवं अन्य में पारित आदेश दिनांक 22 -2 -2018 के परिपालन एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपील क्रमांक 36685 / 2018 मे पारित निर्णय दिनांक 30/ 11 2018 , उच्च न्यायालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ में दायर WP NO 4765 / 2005 में के संदर्भ में कार्यालय प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख मध्य प्रदेश भोपाल (शाखा -प्रशासन!-ll) के आदेश क्रमांक 5355. दिनांक 16/ 09/ 2019 के द्वारा वर्ष 1971 से वर्ष 1979 तक की सीधी भर्ती वनपाल को 21 मई 1987 से उपवन क्षेत्रपाल तथा 26 /06 /1996 से वन क्षेत्रपाल के पद पर पदोन्नति वरीयता का निर्धारण का आदेश जारी किया जाकर आदेश के परिपालन मे पात्र वन क्षेत्रपाल को मिलने वाले अवशेष देय स्वत्वो एवं पेंशन का पुनःनिर्धारण पर मिलने वाली राशि आर्थिक लाभ का भुगतान भी किया जा चुका है ।

क्योंकि परिवाद के विषय वर्ष 1971 से 79 तत्कालीन अविभाजित मध्य प्रदेश का हिस्सा था अतः उच्च न्यायालय जबलपुर मध्यप्रदेश के द्वारा पारित निर्णय का लाभ छत्तीसगढ़ में कार्यरत वर्ष 1971 से वर्ष 1979 सन तक की सीधी भर्ती के वनपाल को भी मिलेगा । तथा इन अवधि की सीधी भर्ती वनपाल पात्रता की श्रेणी में आते हैं ।जहां एक और प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख मध्यप्रदेश भोपाल के द्वारा 16 / 06 / 2019 आदेश जारी देय स्वत्वो एवं अवशेष राशि का भुगतान भी किया जा चुका है ।

तकरीबन 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ में माननीय उच्च न्यायालय के पारित निर्णय का लाभ ना मिलने की स्थिति में छत्तीसगढ़ के पात्रता रखने वाले तत्कालीन समय की वनपाल ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक छत्तीसगढ़ को माननीय उच्च न्यायालय के पारित निर्णय एवं प्रधान मुख्य वन संरक्षक मध्यप्रदेश भोपाल के द्वारा पारित आदेश का हवाला देते हुए पदोन्नति एवं वरीयता निर्धारण तथा आर्थिक लाभ दिए जाने के संबंध में आवेदन प्रस्तुत किया गया इसके बावजूद उनके आवेदनों पर किसी प्रकार का विचार ना करके माननीय उच्च न्यायालय के पारित निर्णय को भी अनदेखा किया जा रहा था कर लाभ से वंचित रखा गया था । छत्तीसगढ़ शासन वन विभाग की हठधर्मिता से दुखी और परेशान होकर अपने अधिकार के लिए तत्कालीन समय के वनपाल में से करीबन 100 ने माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर छत्तीसगढ़ मे अलग-अलग याचिकाएं दायर की है ।याचिका सर्विस क्रमांक WP S 6845 /2022 WP S 8510 /2022 ,WP S 8659 /2022 इस प्रकार करीबन पांच याचिकाएं दायर की गई ।दायर याचिका के संदर्भ में माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा विभाग प्रमुख एवं सचिव वन को सुनवाई हेतु उपस्थित होने के निर्देश दिए गए जिस पर विभाग ने कर्मचारी हित में कोई कार्यवाही नही की दुखी होकर परेशान याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय की अवमानना दायर की गई तब कहीं जाकर विभाग एवं शासन ने कार्रवाई करते हुए 26 जून 2023 को पात्र 99 वन क्षेत्रपाल को 26/6/ 96 की स्थिति में पदोन्नत कर वरिष्ठता निर्धारण का सूची जारी किया ।इसके पहले मार्च 23 मे पात्र 75 वन क्षेत्रपाल की सूची जारी की गई थी।

उच्च न्यायालय जबलपुर उच्च न्यायालय बिलासपुर दायर याचिकाओं में पारित निर्णय वर्ष फरवरी 2018 जिनके अनुसार पात्र वन क्षेत्रपाल को 20 19 की स्थिति में आर्थिक लाभ का भुगतान हो जाना चाहिए था छत्तीसगढ़ में आज तक भुगतान ना हो पाना दुखद है। ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग माननीय उच्च न्यायालय आदेश की अवहेलना कर रहा है और अनदेखा कर रहा है ना ही कर्मचारियों को उनके दे अधिकारों का भुगतान करने की मानसिकता है ।

विभाग एवं शासन से परेशान होकर न्यायालय की शरण में जाने वाले वन क्षेत्रफल अभी भी परेशान और दुखी है उन्हें समझ में नहीं आ रहा है अब करे तो करे क्या अपने देय स्वत्वों के भुगतान हेतु उन्हें पुनः एक बार माननीय उच्च न्यायालय की शरण लेना पड़ेगा। विभाग एवं शासन से परेशान इन कर्मचारियों के प्रति कितने सजग है इसका एक उदाहरण यह भी देखने को मिलता है कि विभाग शासन की ओर से उनके द्वारा न्यायालय के आदेश के परिपालन में जो आदेश हुए हैं उसकी कॉपी भी अभी तक किसी को नहीं दी गई है

वनपाल में से उपवन क्षेत्रपाल बनाए गए करीबन 408 में से केवल 200 की वन क्षेत्रपाल के पद पर पदोन्नत कर वरिष्ठता निर्धारित हुए। जबकि अभी भी करीबन 200 वन क्षेत्र पाल के पद पर पदोन्नत नहीं किया गया है। उन्हें अभी अपनी बारी का इंतजार है। देखना है उन वंचित को पदोन्नति की सौगात पहले मिलती है या फिर जिस प्रकार उनके अनेक साथी इंतजार में स्वर्गवासी हो गए हैं वह भी उन्हीं की श्रेणी में आते हैं क्या यहां यह बताना लाजमी है कि 1971 से 1979 के पात्र वनपाल में से अधिकांश सेवानिवृत्त हो चुके हैं तथा वृद्ध होकर अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं जबकि इनमें से कुछ लोग की मृत्यु भी हो चुकी हैं ,जबकि कुछ परिवार मैं पति पत्नी भी गुजर गए हैं ऐसे में उनके परिवारों का आर्थिक संकट हो हो जाना लाजमी है न्यायालय के आदेश को भी ना मानना यह कहां का न्याय है

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